Goa Fire Tragedy का दिल दहला देने वाला सच: 25 मौतें, उत्तराखंड–UP के युवा सपनों संग खामोश, परिवारों में कोहराम!

गोवा के भयावह क्लब अग्निकांड में 25 लोगों की दर्दनाक मौत, जिनमें उत्तराखंड के 5 और उत्तर प्रदेश के 2 युवा शामिल. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने परिवारों से बात कर सांत्वना दी और शव जल्द घर पहुंचाने के निर्देश दिए. क्लब में काम करने वाले युवाओं की पहचान सामने आई, जिनमें कानपुर के रोहन सिंह की दिल दहला देने वाली कहानी भी शामिल. पूरा उत्तर भारत इस त्रासदी से सदमे में है.

Dec 8, 2025 - 12:26
Goa Fire Tragedy का दिल दहला देने वाला सच: 25 मौतें, उत्तराखंड–UP के युवा सपनों संग खामोश, परिवारों में कोहराम!

देहरादून से लेकर लखनऊ और गोवा तक दर्द की एक लंबी लहर दौड़ गई है। हाल ही में गोवा के एक हाई-प्रोफ़ाइल नाइट क्लब में लगी आग ने 25 जिंदगियों को निगल लिया—और उन राख में दफन हैं उत्तराखंड के 5 और उत्तर प्रदेश के 2 सपने, जो अपने घरों में खुशियों की रोशनी वापस लाने निकले थे।

इस हृदयविदारक हादसे के बाद पहाड़ से मैदान तक मातम पसरा है। उत्तराखंड के जितेंद्र सिंह, सुमित नेगी, मनीष सिंह, सतीश सिंह और सुरेंद्र सिंह… सातों घरों की उम्मीदें एक ही रात में बुझ गईं। मनीष चंपावत का लाल था, जबकि टिहरी के जितेंद्र और सतीश को तो पूरा इलाका जानता था—मेहनती, हंसमुख, जीवन से भरे हुए।

उत्तर प्रदेश भी इस त्रासदी से अछूता नहीं रहा। सुनील कुमार और कानपुर के रोहन सिंह—दोनों के सपने भी उसी क्लब की आग में खामोश हो गए। लेकिन रोहन की कहानी तो दिल को चीरकर रख देती है। नेपाल में पिता को खो देने के बाद उसकी मामी रूपा सिंह ने उसे गोद लिया, पाला, पढ़ाया, और उसके खाना बनाने के जुनून को पहचानकर उसे शेफ बनने का रास्ता दिखाया। फरवरी में ही वह गोवा पहुंचा था, नई जिंदगी का पहला पन्ना खोलते हुए… पर उसकी कहानी वहीं थम गई, धुएं की चपेट में, दम घुटने से।

रोहन के ममेरे भाई अजय सिंह का कहना था कि वे दोनों बचपन से साथ बड़े हुए, साथ खेले, साथ पढ़े—और अब एक दर्दनाक खबर ने उन्हें हमेशा के लिए अलग कर दिया।

इधर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार हालात पर नजर बनाए हुए हैं। उन्होंने मृतकों के परिवारों से बात कर सांत्वना दी और गोवा सरकार से संपर्क कर राहत और शवों की जल्द वापसी सुनिश्चित करने की अपील की है।

देश भर में इस त्रासदी ने सवाल खड़े कर दिए हैं—आखिर कब तक ऐसी लापरवाहियां मासूम जिंदगियों को निगलती रहेंगी? फिलहाल, कई घरों की चूल्हे बुझ गए हैं, और माताओं के आंगन में गूंजती हंसी हमेशा के लिए खामोश हो चुकी है।