मध्य प्रदेश के चोली गांव में क्यों नहीं मनाई जाती होली, जानिए अनोखी परंपरा

मध्य प्रदेश के चोली गांव में होली नहीं मनाई जाती, यहां इस दिन दुख बांटा जाता है। यह गांव खरगोन जिले में है और इसे देवगढ़ भी कहा जाता है। यहां होली न मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। गांव के लोग पहले उन परिवारों के घर जाते हैं जहां किसी की मृत्यु हो गई हो, उन्हें गुलाल लगाकर सांत्वना देते हैं, और उनके दुख में सहभागी बनते हैं। अगले दिन पूरे गांव में धूमधाम से होली खेली जाती है। उनका मानना है कि होली सिर्फ खुशियां मनाने का त्योहार नहीं है, बल्कि यह दुख में साथ देने का अवसर भी है.

Mar 8, 2025 - 16:52
मध्य प्रदेश के चोली गांव में क्यों नहीं मनाई जाती होली, जानिए अनोखी परंपरा
होली, जो फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है, रंगों और खुशियों का त्योहार है। इस त्योहार से एक दिन पहले होलिका दहन होता है, और अगले दिन लोग रंग वाली होली खेलते हैं। लेकिन, मध्य प्रदेश में एक ऐसा गांव है, चोली, जहां होली नहीं मनाई जाती है।

चोली गांव: एक अनोखी परंपरा
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित चोली गांव में होली नहीं मनाई जाती। यहां होली के दिन, लोग एक दूसरे के साथ दुख और दर्द बांटते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। चोली गांव, जिसे देवगढ़ के नाम से भी जाना जाता है, विंध्याचल पर्वत की तलहटी में बसा है।

क्यों नहीं मनाई जाती होली?
चोली गांव में होली न मनाने की परंपरा के पीछे एक खास कारण है। गांव के बुजुर्गों ने यह परंपरा शुरू की थी, जिसके अनुसार, होली के दिन कोई भी व्यक्ति रंगों में नहीं डूबता। पूरे गांव में शांति बनी रहती है, और लोग किसी भी तरह के उत्सव में शामिल नहीं होते हैं।

दुख में साथ, फिर खुशियों का रंग
हालांकि, अगले दिन पूरे गांव में उल्लास के साथ होली मनाई जाती है। चोली गांव के लोगों का मानना है कि होली सिर्फ खुशियां मनाने का त्योहार नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के साथ खड़े होने का अवसर भी है जिन्होंने अपने परिवार में किसी प्रियजन को खो दिया है। इसलिए, होली के दिन, गांव के लोग पहले उन परिवारों के घर जाते हैं जहां किसी की मृत्यु हो गई हो, उन्हें गुलाल लगाकर सांत्वना देते हैं, और उनके दुख में सहभागी बनते हैं।

भाईचारे और सहानुभूति का संदेश
यह परंपरा समाज में आपसी भाईचारे और सहानुभूति को मजबूत करती है। इस परंपरा के माध्यम से, गांव के लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी परिवार त्योहार की खुशी से वंचित न रह पाए। जब ये परिवार सांत्वना पाकर अपने दुख से उबर जाते हैं, तो अगले दिन पूरे गांव में धूमधाम से होली खेली जाती है।