राष्ट्रपति के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा करेगी सरकार
केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है जिसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समय सीमा तय की गई है। सरकार उस आदेश पर भी पुनर्विचार कर सकती है जिसमें राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा रोकने की स्थिति में राज्य सरकारों को सीधे राष्ट्रपति से संपर्क करने की अनुमति दी गई है। सरकार को लगता है कि यह नियम सही नहीं है और इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर फैसले के लिए राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए समय सीमा तय की थी। अब सरकार इस फैसले पर समीक्षा याचिका दायर करने की सोच रही है। सूत्रों ने बताया कि सरकार समय सीमा की समीक्षा के साथ-साथ शीर्ष अदालत के उस आदेश की भी समीक्षा कर सकती है जिसमें कहा गया है कि अगर राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक को राष्ट्रपति रोकते हैं, तो राज्य सरकारें सीधे संपर्क कर सकती हैं।
सूत्रों ने यह भी बताया कि सरकार इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में समीक्षा याचिका दायर करेगी। याचिका के आधार पर विचार किया जा रहा है और इसकी जानकारी सरकार के अदालत में पहुंचने के बाद ही मिल पाएगी। यदि सरकार कोर्ट जाती है, तो समीक्षा याचिका जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ के सामने ही दायर की जाएगी, जिन्होंने यह फैसला सुनाया था।
शीर्ष अदालत के 8 अप्रैल के फैसले के बाद, तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए सरकारी राजपत्र में 10 लंबित विधेयकों को अधिनियम के रूप में अधिसूचित किया था। अपने आदेश में, शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया था कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर प्राप्ति की तारीख से तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए।
सरकार विशेष रूप से उस बात पर पुनर्विचार करना चाहती है जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं और राष्ट्रपति उस पर कोई फैसला नहीं लेते हैं, तो राज्य सरकार सीधे राष्ट्रपति से बात कर सकती है। सरकार को लगता है कि यह नियम सही नहीं है और इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है, इसलिए वह सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी कर रही है।