धन्य हैं बिहार के सरकारी स्कूल! न इमारत, न बाउंड्री… बच्चों को पानी तक नसीब नहीं

बिहार के कुछ सरकारी स्कूलों के हालात ऐसे हैं कि बच्चों को पीने के लिए पानी भी नल के जरिए नहीं मिल रहा है. कई स्कूलों में बाउंड्री वॉल तक नहीं है और अवारा पशु स्कूल में घूमते रहते हैं.

Dec 22, 2025 - 15:15
धन्य हैं बिहार के सरकारी स्कूल! न इमारत, न बाउंड्री… बच्चों को पानी तक नसीब नहीं

बिहार सरकार चाहे जितने दावे कर ले कि सरकारी स्कूलों की स्थिति चमक उठी है, लेकिन ज़मीनी तस्वीर अब भी दिल दहला देने वाली है. कई स्कूल आज भी बिना भवन के खुले आसमान के नीचे चल रहे हैं, जहां न ठण्ड का सहारा है, न गर्मी से बचने का कोई इंतज़ाम. मासूम बच्चे धूप, धूल और ठंड में पढ़ने को मजबूर हैं. कई जगह तो पीने के पानी तक की सही सुविधा नहीं, नल हैं तो उनमें टोटियां ही गायब हैं और चारदीवारी का तो नामोनिशान नहीं.

इन्हीं चिंताजनक हालातों को देखते हुए शिक्षा विभाग ने सभी जिलाधिकारियों से ऐसे स्कूलों की पूरी सूची मांगी है जिनके पास न बाउंड्री है और न पानी की उचित व्यवस्था. इसी सच्चाई की पड़ताल के लिए आज तक की टीम लखीसराय और जमुई के कई गांवों में पहुंची, और वहां जो देखा, वह किसी को भी झकझोर कर रख दे.

केस स्टडी-1

जमुई के खैरा प्रखंड के गोसाईदीह गांव में मौजूद प्राथमिक विद्यालय की कहानी आपको हैरान कर देगी. यहां पहली से पांचवीं तक पढ़ने वाले लगभग 50 बच्चे हैं, लेकिन उनका अपना स्कूल भवन पिछले 12 सालों से बना ही नहीं. 2013 से लेकर आज तक बच्चे कभी पीपल के पेड़ के नीचे तो कभी खुले मैदान में बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं.

सर्दियों में हालात और मुश्किल हो जाते हैं, इसलिए गांव वालों ने मुखिया द्वारा बनाए गए यात्री शेड को ही क्लासरूम में बदल दिया. यह शेड चारों तरफ से खुला था, लेकिन बच्चों के लिए कुछ करने की सोचकर गांव वालों ने खुद पैसे जमा किए और चारों तरफ दीवार खड़ी कर दी ताकि बच्चों को कम से कम एक बंद जगह मिल सके.

क्योंकि स्कूल का कोई स्थायी भवन नहीं, इसलिए न पीने के पानी की व्यवस्था है, न शौचालय और न ही मिड-डे मील पकाने की रसोई. शिक्षक अक्षय कुमार बताते हैं कि 12 साल में एक भी भवन स्वीकृत नहीं हुआ और महिला शिक्षिकाएं शौचालय की कमी से रोज परेशान होती हैं. दूसरे शिक्षक राधा चरण दयाल बताते हैं कि प्रशासन से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. ग्रामीण शनटू गोस्वामी बताते हैं कि अधिकारी आते तो हैं, पर बिना काम किए ही लौट जाते हैं.

केस स्टडी-2

जमुई के ही सगदाहा गांव में स्थित मिडिल स्कूल का हाल भी किसी चौंकाने वाली कहानी से कम नहीं. यहां स्कूल का भवन तो है, लेकिन चारदीवारी पहले खुद स्कूल प्रशासन ने ही गिरवा दी. वादा था कि जल्द ही नई बाउंड्री बनेगी, लेकिन एक साल बीत गया और स्कूल आज भी बिना सुरक्षित घेरा के खुला पड़ा है. नतीजा—स्कूल परिसर में जानवरों का जमावड़ा लगा रहता है.

यहां बच्चों के लिए पानी की टंकी तो लगाई गई है, लेकिन पांचों पानी के पाइपों पर टोटी ही नहीं लगाई गई. मजबूरी में बच्चे हैंडपंप का सहारा लेकर प्यास बुझाते हैं. सुविधाओं की इस हालत ने सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है.

केस स्टडी-3

लखीसराय के हलसी प्रखंड के पिपरा गांव में स्थित उत्क्रमित मध्य विद्यालय का नज़ारा भी कम चिंताजनक नहीं. स्कूल में न बाउंड्री है, न सुरक्षा. कुत्ते और पशु अंदर घूमते रहते हैं और बच्चों की पढ़ाई बार-बार बाधित होती है. प्रधानाध्यापक विपिन भारती और पूर्व प्रधानाध्यापक कई बार जिला प्रशासन को पत्र लिख चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

सबसे खतरनाक बात यह है कि यह स्कूल NH-333 के बिल्कुल बगल में है. तेज रफ्तार वाहनों का शोर और खतरा हर वक्त बना रहता है, फिर भी शिक्षा विभाग की आंखें अब तक नहीं खुलीं. यह स्थिति बताती है कि बिहार के कई सरकारी स्कूल आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.