घर बना दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे में स्पीड ब्रेकर, 27 साल से जारी है कानूनी लड़ाई

दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के निर्माण में एक घर बाधा बन गया है, क्योंकि मकान मालिक ने 2007 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जो अभी भी लंबित है। गाजियाबाद के मंडोला इलाके में वीरसेन सरोहा का परिवार 90 के दशक से एक घर में रहता है, और उन्होंने यूपी हाउसिंग बोर्ड द्वारा जमीन अधिग्रहण के प्रयासों का विरोध किया। हाउसिंग स्कीम के विफल होने के बाद, एनएचएआई ने एक्सप्रेसवे के लिए जमीन की खोज शुरू की, लेकिन वीरसेन का घर अभी भी वहीं खड़ा है। एनएचएआई अक्षरधाम और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के बीच दो खंडों में एक्सप्रेसवे बना रहा है, लेकिन वीरसेन का घर अभी भी रास्ते में है। वीरसेन की मृत्यु के बाद, उनके पोते लक्ष्यवीर ने सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया, जिसने इसे लखनऊ बेंच को सौंप दिया। कोर्ट ने तेजी से मामले को निपटाने का निर्देश दिया है, क्योंकि यह परियोजना जनहित में है। इस घर का मुद्दा सुलझने तक एक्सप्रेसवे अधूरा रहेगा।

Mar 29, 2025 - 12:56
घर बना दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे में स्पीड ब्रेकर, 27 साल से जारी है कानूनी लड़ाई
दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के निर्माण में एक घर बाधा बन गया है। 27 साल पहले शुरू हुई इस कहानी में, मकान मालिक ने 2007 में इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जो अभी भी लंबित है। इसके कारण एक्सप्रेसवे का काम रुका हुआ है।

गाजियाबाद के मंडोला इलाके में 90 के दशक में वीरसेन सरोहा का परिवार 1600 वर्ग मीटर के प्लॉट पर बने घर में रहता था। 1998 में यूपी हाउसिंग बोर्ड ने मंडोला हाउसिंग स्कीम के लिए 2614 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने की अधिसूचना जारी की, लेकिन वीरसेन ने जमीन देने से इनकार कर दिया और हाई कोर्ट चले गए, जहाँ अधिग्रहण पर रोक लग गई। अब उनके पोते कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं।

हाउसिंग स्कीम के विफल होने के बाद, एनएचएआई ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए जमीन की खोज शुरू की। वीरसेन का घर अभी भी वहीं खड़ा है, जबकि आसपास सब कुछ बदल गया है। अब वहां अक्षरधाम से उत्तराखंड तक एक्सप्रेसवे बन गया है।

एनएचएआई अक्षरधाम और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के बीच दो खंडों में एक्सप्रेसवे बना रहा है। अक्षरधाम से लोनी तक 14.7 किमी और लोनी से खेकड़ा तक 16 किमी का खंड पूरा हो चुका है, लेकिन वीरसेन का घर अभी भी रास्ते में है। 212 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे अंतिम चरण में है और जून तक खुलने की उम्मीद है। वीरसेन का घर सड़क के खुलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। एनएचएआई के अनुसार, मुकदमेबाजी के कारण काम रुका हुआ है, क्योंकि घर के मालिक ने सुप्रीम कोर्ट में केस दायर किया है।

मंडोला हाउसिंग प्रोजेक्ट के दौरान सरकार ने 1100 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर से अधिग्रहण की पेशकश की थी, जिससे लगभग 1000 किसान प्रभावित हुए। 94% ने भुगतान स्वीकार कर लिया, लेकिन वीरसेन ने इनकार कर दिया। नीरज त्यागी के अनुसार, वीरसेन मुआवजे की दरें बढ़ाने की मांग कर रहे थे और 2007 में हाई कोर्ट चले गए। 2010 में, अदालती कार्यवाही के कारण यूपी हाउसिंग बोर्ड को उनकी जमीन का सीमांकन करना पड़ा।

वीरसेन की मृत्यु के बाद, 2017-2020 के बीच एनएचएआई की एक्सप्रेसवे योजना शुरू हुई। 2020 में हाउसिंग बोर्ड ने एनएचएआई को जमीन दे दी, जिसमें वीरसेन का घर भी शामिल था। 2024 में, वीरसेन के पोते लक्ष्यवीर ने सुप्रीम कोर्ट में तर्क दिया कि जमीन हाउसिंग बोर्ड को नहीं दी जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को लखनऊ बेंच को सौंप दिया है, जहाँ 16 अप्रैल को सुनवाई होगी। कोर्ट ने तेजी से मामले को निपटाने का निर्देश दिया है, क्योंकि यह परियोजना जनहित में है।

अक्षरधाम-ईपीई सेक्शन दिल्ली-बागपत की दूरी को 30 मिनट से कम कर देगा और अक्षरधाम से लोनी होते हुए बागपत तक निर्बाध कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। हालाँकि, इस घर का मुद्दा सुलझने तक एक्सप्रेसवे अधूरा रहेगा।