आंखों की रोशनी के लिए: ग्लूकोमा के आयुर्वेदिक उपचार
ग्लूकोमा एक गंभीर नेत्र रोग है जिससे अंधापन हो सकता है, लेकिन शुरुआती पहचान और प्रबंधन से इसे रोका जा सकता है। डॉ. मन्दीप सिंह बसु के अनुसार, ग्लूकोमा के मामले बढ़ रहे हैं, इसलिए समय पर जांच जरूरी है। इसके दो मुख्य प्रकार हैं, ओपन-एंगल और एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा। आयुर्वेद में प्राकृतिक उपचारों जैसे आहार, जड़ी-बूटियों, व्यायाम और योग के माध्यम से इसका इलाज किया जाता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण दोषों के असंतुलन को ठीक करने पर केंद्रित है।
डॉ. मन्दीप सिंह बसु के अनुसार, 2020 में लगभग 64.3 मिलियन लोग ग्लूकोमा से प्रभावित थे, और 2040 तक यह संख्या 111.8 मिलियन तक पहुंचने की उम्मीद है। इसलिए, इसे समय पर पहचानना और इलाज करवाना बहुत जरूरी है।
ग्लूकोमा धीरे-धीरे विकसित होता है, और इसकी शुरुआती अवस्था में कोई साफ लक्षण नहीं होते। अधिकतर लोग तब तक कोई परेशानी महसूस नहीं करते जब तक कि उनकी ऑप्टिक नर्व को गंभीर नुकसान नहीं पहुंच जाता। इस कारण से, नियमित आंखों की जांच करवाना बेहद जरूरी है, क्योंकि यदि एक बार दृष्टि चली गई, तो उसे वापस नहीं लाया जा सकता। हालांकि, अगर समय रहते इस बीमारी का पता चल जाए, तो इलाज से आगे होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है।
ग्लूकोमा के दो मुख्य प्रकार हैं: ओपन-एंगल ग्लूकोमा और एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा। ओपन-एंगल ग्लूकोमा सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें आंखों में तरल पदार्थ सही तरीके से बाहर नहीं निकल पाता, जिससे आंखों का दबाव धीरे-धीरे बढ़ता है। एंगल-क्लोजर ग्लूकोमा कम सामान्य लेकिन ज्यादा खतरनाक होता है, जिसमें आंख का तरल अचानक जमा हो जाता है, जिससे आंखों का दबाव तेजी से बढ़ जाता है।
आयुर्वेद में ग्लूकोमा के इलाज के लिए प्राकृतिक और समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाता है। इसमें आहार परिवर्तन, हर्बल दवाएं, व्यायाम और योग शामिल होते हैं, जो आंखों की सेहत को बनाए रखने में मदद करते हैं। सही डाइट, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां, आंखों के व्यायाम, नस्य चिकित्सा और तनाव प्रबंधन ग्लूकोमा के इलाज में सहायक हो सकते हैं। आयुर्वेद ग्लूकोमा को दोषों के असंतुलन के आधार पर दो भागों में बांटता है: वातजा अधिमंत और पित्तजा अधिमंत।