अमेरिकी एयरस्ट्राइक से यमन में तनाव, निशाने पर ईरान या सऊदी?
यमन में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया है। हूतियों और ईरान ने हमले की निंदा की है, जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि यह सऊदी अरब को संदेश देने और यमन को इजरायल के खिलाफ कार्रवाई से रोकने का प्रयास है। हूतियों ने जवाबी हमले की चेतावनी दी है, और ईरान ने इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका लंबी लड़ाई नहीं चाहता और इजरायल भी संघर्ष से दूर रहेगा, क्योंकि हूतियों पर हमले से क्षेत्रीय अशांति बढ़ सकती है। यह घटनाक्रम ऐसे समय पर हुआ है जब ट्रंप ने ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम पर बातचीत करने को कहा था।

हूतियों ने अमेरिका और ब्रिटेन पर यमन की राजधानी सना के रिहाइशी इलाकों में हमला करने का आरोप लगाया है। हूती समूह ने जवाबी हमले की चेतावनी दी है। ईरान के विदेश मंत्रालय ने भी इस हमले की निंदा करते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है।
ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराकची ने कहा कि अमेरिका ईरान की विदेश नीति तय नहीं कर सकता। रिवोल्यूशनरी गार्ड के प्रमुख हुसैन सलामी ने कहा कि ईरान युद्ध नहीं चाहता, लेकिन किसी भी धमकी का जवाब देगा। जानकारों का कहना है कि इस घटनाक्रम से पश्चिम एशिया में अशांति फैल सकती है। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि यह एयर स्ट्राइक सऊदी अरब के लिए एक सांकेतिक रणनीति है।
डॉ. ओमैर अनस के अनुसार, अमेरिका इस स्ट्राइक के जरिए दो संदेश देना चाहता है। पहला, सऊदी अरब को विश्वास में नहीं लिया गया, जिससे अमेरिका नाराज है। दूसरा, यमन को इजरायल के खिलाफ कार्रवाई से दूर रहने का संकेत दिया गया है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका लंबी लड़ाई नहीं चाहता और इजरायल भी संघर्ष से दूर रहेगा। हूतियों पर हमले से पूरे क्षेत्र में अशांति हो सकती है और देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने की प्रक्रिया बाधित हो सकती है। हूतियों ने जनवरी में हमास और इजरायल के बीच सीजफायर के बाद हमले रोक दिए थे, लेकिन बाद में इजरायली जहाजों पर हमला करने की धमकी दी।
यह हमला ऐसे समय पर हुआ है जब राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के सुप्रीम लीडर खामनेई को पत्र लिखकर न्यूक्लियर प्रोग्राम पर बातचीत करने को कहा था। खामनेई ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि अमेरिका दबाव डाल रहा है। जानकारों का मानना है कि यह ईरान पर दबाव बनाने की रणनीति हो सकती है, खासकर तब जब चीन और रूस ने ईरान के प्रोग्राम का समर्थन किया है।