न्यायपालिका में जवाबदेही: जस्टिस वर्मा केस
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से जली हुई नकदी मिलने की घटना ने न्यायपालिका में जवाबदेही और पारदर्शिता की बहस को फिर से शुरू कर दिया है। इस घटना ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) के मुद्दे को भी उठाया है, जिसे 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अगर NJAC होता तो स्थिति अलग होती। कॉलेजियम के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं और मांग उठ रही है कि न्यायपालिका में जवाबदेही तय करने के लिए NJAC की तर्ज पर एक आयोग का गठन किया जाए। जस्टिस वर्मा को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलना चाहिए और मामले का निष्कर्ष जल्दी निकलना चाहिए।

इस घटना ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट्स कमीशन (NJAC) के मुद्दे को भी उठाया है, जिसे 2015 में न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के लिए प्रस्तावित किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अगर NJAC होता तो स्थिति अलग होती।
धनखड़ का कहना है कि अगर NJAC होता, तो सुप्रीम कोर्ट के जजों का कॉलेजियम जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाई कोर्ट वापस भेजने का फैसला नहीं कर पाता। कॉलेजियम के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं और NJAC भाई-भतीजावाद और अपारदर्शिता को खत्म करने का वादा करता है।
कॉलेजियम सिस्टम पहले भी विवादों में रहा है, जैसे कि उसने एक दागदार जज को सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। अब मांग उठ रही है कि न्यायपालिका में जवाबदेही तय करने के लिए NJAC की तर्ज पर एक आयोग का गठन किया जाए। ऐसा आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि न्यायपालिका अपने सदस्यों को बचाने की कोशिश न करे।
जस्टिस वर्मा को एक अच्छा जज माना जाता है, लेकिन इस आरोप ने उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया है। किसी भी जवाबदेही प्रक्रिया में, उन्हें निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलना चाहिए और मामले का निष्कर्ष जल्दी निकलना चाहिए।