लखनऊ: CBI अफसर बन महिला से 10 लाख की ठगी, डिजिटल अरेस्ट में रखा
लखनऊ में एक महिला साइबर ठगी का शिकार हुई, जहाँ उसे सीबीआई अधिकारी बनकर ठगों ने डिजिटल अरेस्ट में रखा और 10 लाख रुपये ऐंठ लिए। महिला ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। साइबर एक्सपर्ट्स का कहना है कि असली जांच एजेंसियां इस तरह डिजिटल अरेस्ट नहीं करतीं, बल्कि गोपनीय तरीके से निगरानी रखती हैं।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में, हुसैनगंज इलाके की एक महिला को साइबर अपराधियों ने सीबीआई अधिकारी बनकर छह दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा। उन्होंने महिला को धमकाकर 10 लाख रुपये ट्रांसफर करवा लिए। जब महिला को ठगी का एहसास हुआ, तो उसने साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई। अलका मिश्रा नाम की इस महिला ने पुलिस को बताया कि 15 मार्च को दोपहर में उन्हें एक कॉल आई, जिसमें कॉलर ने खुद को सीबीआई अधिकारी बताया। इसके बाद, उन्हें वॉट्सऐप कॉल की गई।
कॉलर ने अलका को बताया कि उनके नाम से भोपाल में बैंक ऑफ बड़ौदा में एक खाता खोला गया है, जिसका इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग के लिए हो रहा है। अलका ने बताया कि वह कभी भोपाल नहीं गईं। कॉलर ने उन्हें गिरफ्तारी का डर दिखाया और बैंक खातों की जांच करने का बहाना किया। अलका को 15 मार्च से 20 मार्च तक वीडियो कॉल पर रखा गया।
जांच के नाम पर, अलका से अलग-अलग खातों में 10 लाख रुपये ट्रांसफर कराए गए और यह कहा गया कि जांच के बाद पैसे वापस कर दिए जाएंगे। उन्हें धमकाया गया कि उन पर नजर रखी जा रही है और किसी को कुछ भी बताने पर कार्रवाई की जाएगी। इस डर से अलका ने किसी को कुछ नहीं बताया।
दो-तीन दिनों के बाद, अलका ने सीबीआई अधिकारी बनकर कॉल करने वालों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। तब उन्हें ठगी का एहसास हुआ और उन्होंने साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
रिटायर्ड आईपीएस और साइबर एक्सपर्ट डॉ. त्रिवेणी सिंह ने बताया कि पुलिस, सीबीआई या कोई भी जांच एजेंसी डिजिटल अरेस्ट करके जांच नहीं करती है। आधिकारिक तौर पर डिजिटल अरेस्ट जैसा कुछ नहीं होता। जब कोई जांच एजेंसी किसी पर नजर रखती है, तो उस व्यक्ति को इसकी भनक तक नहीं लगती। जांच एजेंसियां लोगों के मोबाइल, लैपटॉप और अन्य डिवाइस की निगरानी बहुत सावधानी से करती हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि बैंक खातों के लेनदेन पर भी नजर रखी जाती है, और संदिग्ध गतिविधियां दिखने पर जांच एजेंसियां खातों को ब्लॉक कर देती हैं। संदिग्ध व्यक्तियों के डिजिटल फुटप्रिंट्स को गोपनीय तरीके से ट्रैक किया जाता है।