ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी: हिन्दू धर्म पर विवाद, क्या है पूरा मामला?
ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी में 'लिव्ड हिंदू रिलीजन' पाठ्यक्रम पर विवाद के बाद यूनिवर्सिटी ने अकादमिक स्वतंत्रता का समर्थन किया। प्रोफेसर उल्लेरी ने स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म विभिन्न रूपों में है, जिसका ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ महत्वपूर्ण है। यूनिवर्सिटी ने स्पष्ट किया कि 'फंडामेंटलिज्म' शब्द का अर्थ धर्म के मूल को बचाने का दावा करने वाले आंदोलन से है, न कि किसी धर्म की आलोचना से। प्रोफेसर उल्लेरी ने कहा कि पाठ्यक्रम का उद्देश्य हिंदू धर्म के विभिन्न रूपों को समझाना है।

ह्यूस्टन विश्वविद्यालय में 'लिव्ड हिंदू रिलीजन' नामक पाठ्यक्रम को लेकर एक छात्र द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद, विश्वविद्यालय ने अकादमिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है। विश्वविद्यालय का कहना है कि यह पाठ्यक्रम धार्मिक अध्ययन के अंतर्गत आता है। प्रोफेसर उल्लेरी ने स्पष्ट किया कि हिंदू धर्म एक निश्चित रूप नहीं है, बल्कि विभिन्न रूपों में प्रकट होता है, और इसका ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ महत्वपूर्ण है।
कोर्स की समीक्षा और यूनिवर्सिटी का रिएक्शन
शिकायत के बाद, यूनिवर्सिटी के डीन और धार्मिक अध्ययन विभाग के डायरेक्टर ने शिकायत की जांच की और उसे टीचर से चर्चा के लिए भेजा। यूनिवर्सिटी ने साफ किया कि यह कोर्स धार्मिक अध्ययन के फील्ड में बेस्ड है, जो अलग-अलग धर्मों के आंदोलनों को समझने के लिए खास शब्दों का इस्तेमाल करता है, जैसे कि 'फंडामेंटलिज्म'।
'फंडामेंटलिज्म' वर्ड का एजुकेशनल मतलब
यूनिवर्सिटी ने यह भी क्लियर किया कि फंडामेंटलिज्म वर्ड का मतलब एक ऐसे आंदोलन से है, जो धर्म के ओरिजिनल या सही रूप को बचाने का दावा करता है। यह वर्ड एक हिस्टोरिकल नजरिए से धार्मिक आंदोलनों को समझने का एक तरीका है और इसका इस्तेमाल किसी भी धर्म के अगेंस्ट नहीं किया जाता। यूनिवर्सिटी का कहना है कि यह वर्ड किसी भी धर्म की आलोचना के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक विचारों की हिस्टोरिकल और सोशल प्रोसेस को समझने के लिए है।
प्रोफेसर उल्लेरी ने आगे कहा कि उनका मकसद हिंदू धर्म के अलग-अलग रूपों को समझाना है, न कि उसे किसी एक रूप में बांधना। उन्होंने यह भी कहा कि उनके कोर्स में हिंदू धर्म के पुराने रूपों से लेकर आज के वक्त तक के अलग-अलग पहलुओं पर बात की जाती है।