बिहार कांग्रेस: खरगे-राहुल का 'मिशन बिहार', नई रणनीति से बदलेगी तस्वीर?

कांग्रेस बिहार में संगठन को मजबूत करने के लिए 25 मार्च को खरगे-राहुल गांधी के साथ बैठक करेगी। पार्टी यूपी और बिहार में पकड़ मजबूत करना चाहती है, वर्तमान में आरजेडी के साथ गठबंधन में है, लेकिन जमीनी स्तर पर उपस्थिति बढ़ाना चाहती है। लोकसभा चुनाव में मिली सीटों से उम्मीद जगी है। राहुल गांधी ने कृष्णा अलावरू को प्रभारी बनाया और राजेश कुमार को कमान सौंपी। दलित नेता को कमान देना रणनीतिक कदम माना जा रहा है। कन्हैया कुमार रोजगार को लेकर पदयात्रा कर रहे हैं, जिससे आरजेडी और कांग्रेस के कुछ नेता असहज हैं। पार्टी पप्पू यादव को भी जिम्मेदारी दे सकती है। कांग्रेस का लक्ष्य राज्य में अपने दम पर मजबूत होना है।

Mar 23, 2025 - 07:02
बिहार कांग्रेस: खरगे-राहुल का 'मिशन बिहार', नई रणनीति से बदलेगी तस्वीर?
कांग्रेस पार्टी बिहार में अपने संगठन को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इसके लिए 25 मार्च को मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी बिहार के नेताओं के साथ मीटिंग करेंगे। कांग्रेस हिंदी पट्टी के दो बड़े राज्यों, उत्तर प्रदेश और बिहार में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है। वर्तमान में, दोनों राज्यों में पार्टी क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन में है। बिहार में, कांग्रेस लंबे समय से आरजेडी के साथ है, लेकिन अब वह जमीनी स्तर पर अपनी उपस्थिति और संगठन को मजबूत करना चाहती है। पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार में तीन और उत्तर प्रदेश में छह सीटें जीतने के बाद पार्टी में उम्मीद जगी है। कांग्रेस नेतृत्व, खासकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष, इस पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने हाल ही में दो बार राज्य का दौरा किया है। पार्टी हाईकमान जल्द ही राज्य के बारे में एक मीटिंग करने वाला है। 25 मार्च को दिल्ली में, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी बिहार कांग्रेस के साथ एक रणनीतिक बैठक करेंगे, जिसमें आगामी चुनावों पर चर्चा होगी। राहुल गांधी बिहार पर कितना ध्यान दे रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने राज्य के प्रभारी के रूप में कृष्णा अलावरू को नियुक्त किया है, जिन्हें वे विश्वसनीय मानते हैं। इसके अलावा, पार्टी ने बिहार में अपना नेतृत्व भी बदल दिया है, अखिलेश प्रसाद सिंह की जगह राजेश कुमार को कमान सौंपी गई है। राहुल गांधी देश में जातिगत जनगणना को लेकर अभियान चला रहे हैं, और इस परिप्रेक्ष्य में, बिहार जैसे राज्य में एक दलित नेता को कमान देना एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। माना जा रहा है कि कांग्रेस राजेश कुमार के माध्यम से समाज के एक बड़े वर्ग को संदेश देने की कोशिश कर रही है। राहुल गांधी ने कन्हैया कुमार जैसे कुछ और भरोसेमंद लोगों को भी मैदान में उतारा है, जो बिहार से हैं। कन्हैया कुमार युवाओं से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे, रोजगार को लेकर राज्य में पदयात्रा कर रहे हैं। उनकी 'पलायन रोको, रोजगार दो' पदयात्रा को अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है। कन्हैया कुमार युवा चेहरा होने के साथ-साथ एनएसयूआई के प्रभारी भी हैं। हालांकि, उनकी यात्रा को लेकर आरजेडी और कांग्रेस के कुछ नेता असहज हैं। अखिलेश प्रसाद सिंह को कन्हैया कुमार को इतनी जिम्मेदारी दिया जाना पसंद नहीं आ रहा था। अखिलेश की तरह कन्हैया भी भूमिहार समुदाय से हैं। चर्चा है कि पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों में पप्पू यादव को भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है। कांग्रेस का लक्ष्य राज्य में अपने दम पर मजबूत होना है, और वह दिल्ली के बाद बिहार में भी ऐसा ही प्रयोग करने पर विचार कर रही है। आरजेडी को इन दोनों नेताओं से कुछ आपत्तियां हैं। कांग्रेस अभी भी मानती है कि वह बिहार में गठबंधन में है, और वह अपनी जमीनी उपस्थिति के आधार पर आरजेडी के साथ सम्मानजनक सीटों के बंटवारे की उम्मीद कर रही है। कांग्रेस को लगता है कि इससे वह आरजेडी के साथ बेहतर सौदेबाजी कर सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव से ठीक पहले अखिलेश सिंह के जाने का एक कारण आरजेडी सहित अन्य दलों के साथ उनके अच्छे संबंध थे, क्योंकि पार्टी को लगता था कि अखिलेश सिंह के रहते आरजेडी के साथ कठिन सौदेबाजी नहीं हो पाएगी।