सिवनी में मेघनाथ मेला: आदिवासी परंपरा और धुरेड़ी उत्सव

सिवनी जिले के पांजरा गांव में आदिवासी समुदाय द्वारा मेघनाथ की विशेष पूजा की जाती है। यहाँ धुरेड़ी पर एक भव्य मेला लगता है, जिसे एशिया का सबसे बड़ा मेघनाथ मेला माना जाता है, जिसमें 20-25 गांवों के आदिवासी एकत्रित होते हैं और 60 फीट ऊंचे खंभे की पूजा करते हैं। मान्यता है कि मनोकामनाएं पूरी होने पर लोग इस खंभे पर बने मचान पर चढ़कर विशेष रस्म अदा करते हैं। यह मेला सिवनी जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह एशिया का सबसे बड़ा मेघनाथ मेला है।

Mar 15, 2025 - 11:09
सिवनी में मेघनाथ मेला: आदिवासी परंपरा और धुरेड़ी उत्सव
सिवनी: आदिवासी परंपरा का अनूठा संगम - मेघनाथ मेला

सिवनी जिले के पांजरा गांव में आदिवासी समुदाय द्वारा मेघनाथ की विशेष पूजा की जाती है। होलिका दहन के दूसरे दिन, धुरेड़ी पर, एक भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसे एशिया का सबसे बड़ा मेघनाथ मेला माना जाता है। इस मेले में लगभग 20-25 गांवों के आदिवासी एकत्रित होते हैं और 60 फीट ऊंचे खंभे की पूजा करते हैं। मान्यता है कि मनोकामनाएं पूरी होने पर लोग इस खंभे पर बने मचान पर चढ़कर विशेष रस्म अदा करते हैं।

संस्कृति और परंपरा का अनूठा संगम

सिवनी अपनी विविधतापूर्ण संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है। यहां की परंपराएं और प्राकृतिक सौंदर्य विश्वभर में जाने जाते हैं। पांजरा गांव का मेघनाथ मेला इन्हीं अनूठी परंपराओं में से एक है। यह मेला होलिका दहन के अगले दिन, धुरेड़ी पर आयोजित किया जाता है। इस अवसर पर आदिवासी समुदाय के लोग रावण के पुत्र मेघनाथ की आराधना करते हैं।

मेघनाथ पूजा का विशेष महत्व

यह मेला केवलारी विकासखंड के पांजरा गांव में लगता है, जो सिवनी जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह एशिया का सबसे बड़ा मेघनाथ मेला है। मेले में आसपास के 20 से 25 गांवों के आदिवासी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं।

60 फीट ऊंचे खंभे की पूजा

मेघनाथ की कोई मूर्ति नहीं होती, बल्कि 60 फीट ऊंचा लकड़ी का खंभा पूजा का प्रतीक माना जाता है। यह खंभा गांव के बाहर स्थापित किया जाता है। खंभे पर चढ़ने के लिए लगभग 30 फीट ऊंची लकड़ी की खूंटी लगाई जाती है, जिससे एक मचान जैसी संरचना तैयार होती है। इस मचान पर तीन लोग बैठ सकते हैं। आदिवासी समुदाय के लोग इस खंभे के नीचे पूजा-अर्चना करते हैं।

मनोकामना पूर्ति की रस्म

मेले का मुख्य आकर्षण वह रस्म है जो मनोकामना पूरी होने पर की जाती है। जिन लोगों की इच्छाएं पूरी होती हैं, उन्हें मचान पर ले जाया जाता है। उन्हें पेट के बल लिटाकर खंभे के ऊपरी सिरे पर लगी घूमने वाली लकड़ी से बांध दिया जाता है। इसके बाद, उन्हें 60 फीट ऊंचे खंभे पर घुमाया जाता है, और इस दौरान उनके ऊपर नारियल फेंके जाते हैं। आदिवासी लोग "हक्कड़े बिर्रे" का जयकारा लगाते हुए वातावरण को उत्साह से भर देते हैं।