एमपी के चोली गांव में होली पर अनोखी परंपरा: दुख-दर्द का बंटवारा

मध्य प्रदेश के चोली गांव में होली का त्योहार अनोखे ढंग से मनाया जाता है। यहां रंग खेलने की बजाय लोग एक-दूसरे के दुख-दर्द में शामिल होते हैं। गांव के लोग उन परिवारों के घर जाते हैं जिन्होंने हाल ही में किसी प्रियजन को खोया है, उन्हें गुलाल लगाकर सांत्वना देते हैं। इसके बाद, अगले दिन पूरे गांव में धूमधाम से होली मनाई जाती है। यह परंपरा समाज में भाईचारे और सहानुभूति को बढ़ावा देती है। चोली गांव, जिसे देवगढ़ भी कहा जाता है, विंध्याचल पर्वत की तलहटी में स्थित है।

Mar 8, 2025 - 16:50
एमपी के चोली गांव में होली पर अनोखी परंपरा: दुख-दर्द का बंटवारा
होली 2025: एमपी के चोली गांव की अनूठी परंपरा

फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि से होली का आरंभ होता है। इससे एक दिन पहले होलिका दहन और अगले दिन रंगों की होली मनाई जाती है। मध्य प्रदेश के चोली गांव में होली नहीं खेली जाती, बल्कि दुख-दर्द बांटा जाता है।

चोली गांव में होली की अनूठी परंपरा

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में स्थित चोली गांव में होली अलग तरह से मनाई जाती है। यहां रंग खेलने की परंपरा नहीं है। यह सदियों से चली आ रही रीति-रिवाज से जुड़ी है। चोली गांव, जिसे देवगढ़ भी कहते हैं, विंध्याचल पर्वत की तलहटी में बसा है।

दुख-दर्द बांटने की परंपरा

गांव के बुजुर्गों ने रंग न खेलने की परंपरा शुरू की थी। होली के दिन, गांव के लोग उन परिवारों के घर जाते हैं जिन्होंने किसी प्रियजन को खो दिया है। वे उन्हें गुलाल लगाकर सांत्वना देते हैं और उनके दुख में शामिल होते हैं। अगले दिन, पूरे गांव में उल्लास के साथ होली मनाई जाती है। चोली गांव के लोगों के अनुसार, होली खुशियां मनाने के साथ-साथ दुख में साथ देने का भी पर्व है।

होली का त्योहार भगवान श्री कृष्ण और भक्त प्रह्लाद से जुड़ा है। इस दिन, लोग गुलाल और अबीर से होली खेलते हैं और वसंत ऋतु का स्वागत करते हैं।