गाजीपुर के किसान उमेश ने माधुरी तरबूज की खेती से बदली किस्मत
गाजीपुर के उमेश श्रीवास्तव ने माधुरी तरबूज की खेती से सफलता की नई कहानी लिखी है। गंगा किनारे रेतीली मिट्टी में इस नस्ल की खेती कर उन्होंने अच्छी कमाई की और दूसरों के लिए प्रेरणा बने। माधुरी नस्ल का तरबूज अपनी कई खासियतों के लिए जाना जाता है। इसका औसत वजन 8 से 12 किलोग्राम होता है और इसका छिलका पतला होने से परिवहन में आसानी होती है। यह तरबूज स्वाद में अत्यंत मीठा और रसीला होता है, जिसकी बाजार में भारी मांग है। इसकी फसल 70 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है। गंगा के रेतीले क्षेत्र में तरबूज की खेती करने वाले किसान उमेश श्रीवास्तव ने एनबीटी ऑनलाइन से खास बातचीत में बताया कि लागत निकालने के बाद पिछले साल उन्हें 60,000 से 70,000 रुपये का मुनाफा हुआ। किसान उमेश ने बताया कि इस खेती में चुनौतियां भी कम नहीं हैं।

उत्तर प्रदेश के गाजीपुर में उमेश श्रीवास्तव ने माधुरी तरबूज की खेती से सफलता की एक नई कहानी लिखी है। गंगा किनारे की रेतीली मिट्टी में इस विशेष नस्ल के तरबूज की खेती करके, उन्होंने न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारा है, बल्कि वे अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। उमेश ने गंगा किनारे की रेतीली मिट्टी में इस नस्ल की खेती को अपनाकर अच्छा मुनाफा कमाया है, जिससे उनकी सफलता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।
माधुरी तरबूज की खासियत
माधुरी नस्ल का तरबूज अपनी अनूठी विशेषताओं के लिए प्रसिद्ध है। इसका वजन लगभग 8 से 12 किलोग्राम होता है, और इसका छिलका पतला होने के कारण इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान होता है। यह तरबूज स्वाद में बहुत मीठा और रसीला होता है, जिसके कारण बाजार में इसकी मांग हमेशा बनी रहती है। इसकी फसल केवल 70 से 75 दिनों में तैयार हो जाती है, जिससे कम समय में अधिक उत्पादन किया जा सकता है। उमेश बताते हैं कि माधुरी नस्ल की खेती ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है। इसकी मिठास और वजन के कारण व्यापारी इसे तुरंत खरीद लेते हैं।
बनारस से लाए बीज
उमेश ने बताया कि उन्होंने इस नस्ल के बीज बनारस से लाकर खेती शुरू की थी। उनकी मेहनत और उचित देखभाल के परिणामस्वरूप, एक बीघा में 6 से 7 टन तक का उत्पादन होता है, जिसे 10 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बेचकर उन्हें अच्छा लाभ मिलता है। इस खेती के बारे में उमेश का कहना है कि माधुरी तरबूज की खेती करना आसान है, बस समय पर सिंचाई और उचित देखभाल की आवश्यकता होती है। उमेश की इस सफलता ने आसपास के किसानों को भी प्रेरित किया है।
मुनाफे की कहानी
गंगा के रेतीले क्षेत्र में तरबूज की खेती करने वाले किसान उमेश श्रीवास्तव ने बताया कि एक एकड़ में तरबूज की फसल लगाने का खर्च लगभग 1 लाख रुपये या उससे अधिक हो सकता है। लागत निकालने के बाद, पिछले वर्ष उन्हें 60,000 से 70,000 रुपये का लाभ हुआ, जिससे वे अपने बच्चों की बीटेक की फीस भरने में सक्षम रहे। उमेश के अनुसार, सही तरीके से प्रबंधन करने पर तरबूज की खेती लाभप्रद हो सकती है।
खेती में चुनौतियां
उमेश ने यह भी बताया कि इस खेती में कुछ चुनौतियां भी हैं। बेमौसम बारिश और गंगा नदी में जल स्तर बढ़ने से फसल को नुकसान होने का खतरा बना रहता है। मौसम और प्राकृतिक आपदाएं कृषि का एक अभिन्न अंग हैं, जो केवल तरबूज की खेती तक ही सीमित नहीं हैं। फिर भी, कड़ी मेहनत और सही प्रबंधन के साथ, यह खेती किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है।