खंडवा में माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा गायब, लोगों में आक्रोश
खंडवा में माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा गायब होने से लोगों में आक्रोश है और इस घटना की शिकायत 181 पर दर्ज की गई है। स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा खंडवा के माखन लाल चौराहे से अचानक गायब हो गई, जिसके बाद लोगों ने सीएम हेल्पलाइन पर शिकायत दर्ज कराई। यह प्रतिमा 2003 में स्थापित की गई थी, लेकिन रेलवे ओवरब्रिज निर्माण के कारण इसे हटाया जाना था, जिसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया था। प्रतिमा के गायब होने से लोगों में सरकार के प्रति अविश्वास पैदा हो गया है। माखनलाल चतुर्वेदी एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे, और उनकी स्मृति में खंडवा में कई संस्थान स्थापित किए गए हैं।

खंडवा जिले से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है। माखन लाल चौराहे पर स्थापित स्वतंत्रता सेनानी माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा अचानक गायब हो गई, जिससे स्थानीय लोगों में गुस्सा है। प्रतिमा का केवल निचला स्तंभ ही बचा है। मूर्ति चोरी की खबर फैलते ही लोगों ने सीएम हेल्पलाइन 181 पर कई शिकायतें दर्ज कराईं।
खंडवा जिले के तीन पुलिया क्षेत्र से यह हैरान करने वाली खबर आई है। 'एक भारतीय आत्मा' कहे जाने वाले माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा रविवार को अचानक गायब हो गई। केवल आधार स्तंभ ही जगह पर है, जबकि प्रतिमा गायब है। कोई भी यह बताने को तैयार नहीं है कि प्रतिमा को किसने, कब, कैसे और कहां हटाया। माखनलाल चतुर्वेदी के अनुयायियों ने इस घटना की शिकायत मुख्यमंत्री हेल्पलाइन में दर्ज कराई है।
बताया जा रहा है कि रेलवे ओवरब्रिज के निर्माण के लिए इस प्रतिमा को हटाया जाना है। जब भी नगर निगम प्रतिमा को हटाने के लिए पहुंचता है, स्थानीय लोग विरोध प्रदर्शन करके उन्हें रोक देते हैं। चार दिन पहले भी प्रतिमा को हटाने का प्रयास किया गया था, लेकिन लोगों के विरोध के कारण इसे रोक दिया गया। प्रतिमा के अचानक गायब होने से कई सवाल उठ रहे हैं। पूछताछ के बाद भी जब कोई जानकारी नहीं मिली, तो लोगों ने सीएम हेल्पलाइन में शिकायत दर्ज कराई।
यह प्रतिमा 2003 में स्थापित की गई थी। माखनलाल चतुर्वेदी, जिन्हें 'एक भारतीय आत्मा' के नाम से भी जाना जाता है, की यह प्रतिमा खंडवा के वरिष्ठ पत्रकारों और उनके समर्थकों के आंदोलन के बाद स्थापित की गई थी। 30 सितंबर 2003 को पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने इसका अनावरण किया था। इस प्रतिमा के लिए लोगों ने काफी संघर्ष किया था, जिसके परिणामस्वरूप दिग्विजय सिंह को भी झुकना पड़ा और रातोंरात प्रतिमा स्थापित की गई। हालांकि, प्रतिमा के अचानक गायब होने से लोगों का सरकार और उसके प्रतिनिधियों से विश्वास उठ गया है।
माखनलाल चतुर्वेदी की लेखनी से अंग्रेज भी कांपते थे। माखनलाल चतुर्वेदी एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनसे मिलने के लिए महात्मा गांधी 1930 में खंडवा आए थे। जब देश स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था और अंग्रेजों का अत्याचार चरम पर था, तब माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने 'कर्मवीर' अखबार के माध्यम से अंग्रेजी शासन को हिला दिया था। अंग्रेजों ने उन्हें कई बार उच्च पदों पर नियुक्त करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने देश सेवा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण कोई भी पद स्वीकार नहीं किया। स्वतंत्रता के बाद, धीरे-धीरे सरकार और लोगों ने उन्हें भुला दिया।
1968 में माखनलाल चतुर्वेदी के निधन के साथ ही उनकी विरासत धीरे-धीरे समाप्त हो गई। उन्होंने खंडवा के बड़ा बम चौक स्थित अपनी कर्मभूमि भवन से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। उन्होंने अपनी अनूठी रचनाओं के माध्यम से लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाई, चाहे वह 'पुष्प की अभिलाषा' हो या 'हिमतरंगिणी', 'कृष्ण अर्जुन संवाद' हो या 'हिमकिरीटनी'। अपनी रचनाओं और कृतियों से उन्होंने लोगों के दिलों पर राज किया। 1968 में उनकी मृत्यु के बाद, सरकार ने धीरे-धीरे उन्हें भुला दिया। खंडवा के लोगों पर उनका एक ऋण था, क्योंकि इतने महान कवि और स्वतंत्रता सेनानी ने खंडवा को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना था। इसलिए, लोगों ने सरकार के खिलाफ कई बार आंदोलन किए।
इन आंदोलनों के परिणामस्वरूप उनके नाम पर कई विश्वविद्यालय और कॉलेज स्थापित किए गए, लेकिन एक संग्रहालय नहीं बन सका जहाँ माखनलाल चतुर्वेदी की स्मृतियों को संरक्षित किया जा सके। जिस मेज पर उन्होंने कविताएँ लिखीं, उनका चश्मा, टोपी और जूते, ये सभी वस्तुएँ उनके परिवार के पास रखी हुई हैं। परिवार ने कई बार सरकार से संग्रहालय बनाने का अनुरोध किया, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में बहुत कुछ है, लेकिन उनकी कर्मभूमि खंडवा में पत्रकारिता विश्वविद्यालय के लिए संचालित कॉलेज पिछले कई दशकों से किराए के भवन में चल रहा है। लोगों ने कई प्रयास किए कि सरकार थोड़ी सी जमीन उपलब्ध कराए ताकि पत्रकारिता के छात्र अपनी इमारत में पत्रकारिता की बुनियादी बातें सीख सकें, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।
खंडवा के पत्रकारों का माखन दादा की प्रतिमा से दशकों पुराना नाता रहा है। कई पीढ़ियाँ बड़ी हो गईं। लोग इस प्रतिमा स्थल पर उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते थे, प्रतिमा को स्नान कराते थे और पुष्पमालाएँ चढ़ाते थे, लेकिन अब यह आयोजन यहाँ कभी नहीं होगा।