पीएचडी: पिता के सवाल आज जयशंकर के लिए हकीकत!
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 'फाइनेंशियल टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में अपने पिता के साथ पीएचडी को लेकर हुई बातचीत का एक किस्सा साझा किया, जिसमें उनके पिता ने उनसे पूछा था कि वे क्या बनना चाहते हैं। आज जयशंकर ने अपनी उपलब्धियों से उन सवालों का जवाब दे दिया है। उन्होंने बताया कि उनके पिता उन्हें चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित करते थे। जयशंकर ने जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी की और एक सफल राजनयिक बने, जिससे भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नई दिशा मिली। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के बाद सबसे लंबे समय तक विदेश मंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया है। इंटरव्यू में उन्होंने राजनीति में प्रवेश करने और धर्मनिरपेक्षता जैसे मुद्दों पर भी बात की。

जयशंकर ने भारतीय कूटनीति को और अधिक आक्रामक बना दिया है। उनके पिता ने एक बार उनकी पीएचडी की योजना पर सवाल उठाया था, लेकिन आज जयशंकर ने अपनी उपलब्धियों से खुद को साबित कर दिया है।
एस. जयशंकर ने भारतीय कूटनीति का चेहरा बदल दिया है। उनके पिता, कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम, परमाणु हथियार हासिल करने के समर्थक थे। जयशंकर ने एक बार अपने पिता से पीएचडी करने की इच्छा जताई, जिसके जवाब में उनके पिता ने पूछा कि वे क्या बनना चाहते हैं। आज, जयशंकर ने उन दोनों सवालों के जवाब हासिल कर लिए हैं। उन्होंने 'फाइनेंशियल टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में यह कहानी सुनाई।
'लंच विद एफटी' एक प्रसिद्ध इंटरव्यू कार्यक्रम है जिसमें दुनियाभर की हस्तियों का इंटरव्यू लिया जाता है। इस बार एस. जयशंकर का इंटरव्यू फॉरेन एडिटर एलेक रसेल ने किया, जिसमें उन्होंने पीएचडी को लेकर अपने पिता की बात याद की।
जयशंकर ने कहा कि उनके पिता उन्हें चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित करते थे। जब वे पीएचडी करने की सोच रहे थे, तो उनके पिता के. सुब्रमण्यम ने उनसे पूछा कि क्या वे दूसरों के काम का विश्लेषण करना चाहते हैं या चाहते हैं कि कोई उनके काम का विश्लेषण करे।
जयशंकर ने जेएनयू से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी की और एक सफल राजनयिक बने, जिससे भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को नई दिशा मिली। उनके पिता के सवालों का जवाब उन्होंने अपने जीवन में हासिल कर लिया। अब दूसरे उनके कार्यों का विश्लेषण करेंगे। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू के बाद सबसे लंबे समय तक विदेश मंत्री रहने का रिकॉर्ड बनाया है।
रसेल ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें 2019 में विदेश मंत्री बनने पर राजनीति में प्रवेश करने में संकोच हुआ, क्योंकि कुछ लोगों ने सोचा था कि वे 'हिंदू राष्ट्रवादी एजेंडे' का समर्थन कर रहे हैं। जयशंकर ने कहा कि यह उनके लिए कोई मुद्दा नहीं था, क्योंकि वे एक राष्ट्रवादी परिवार से आते हैं।
रसेल ने इंदिरा जयसिंह की टिप्पणी पर भी सवाल किया कि 'धर्म का शासन कानून के शासन की जगह ले रहा है।' जयशंकर ने जवाब दिया कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने धर्म का दमन करें। उन्होंने कहा कि यह एक अभिजात्यवादी दृष्टिकोण था जिसे देश ने पीछे छोड़ दिया है।