प्रशांत किशोर: राजनीतिक करियर पर प्रश्नचिह्न, क्या 'वोटकटवा' छवि बनी?
कभी 'मास्टर स्ट्रेटेजिस्ट' कहे जाने वाले प्रशांत किशोर का राजनीतिक करियर बिहार में ढलान पर है। उनकी पार्टी, जनसुराज, हाल के चुनावों में अपनी छाप छोड़ने में विफल रही है, जिसमें विधानसभा उपचुनाव और पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव शामिल हैं। जनसुराज को 'वोटकटवा पार्टी' के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि उनके उम्मीदवारों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, भले ही उन्होंने चुनावों में काफी संसाधन लगाए हों।

जनसुराज ने छात्र संघ चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे और खूब पैसा खर्च किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। प्रशांत किशोर का पटना यूनिवर्सिटी से पुराना नाता रहा है, खासकर जेडीयू से जुड़ने के बाद उन्होंने छात्र जेडीयू को छात्र संघ चुनाव में जिताने की रणनीति बनाई थी।
पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पांच पदों के लिए हुए चुनाव में जनसुराज के उम्मीदवार अध्यक्ष पद के लिए अयोग्य हो गए थे। चुनाव में एबीवीपी ने अध्यक्ष पद जीता, जबकि उपाध्यक्ष और महासचिव निर्दलीय रहे। कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई ने संयुक्त सचिव और कोषाध्यक्ष पद जीते।
पीके ने कांग्रेस का समर्थन किया, लेकिन एनएसयूआई का उम्मीदवार अध्यक्ष पद नहीं जीत पाया। पिछले तीन चुनावों में जन सुराज का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है, जिससे उनकी छवि 'वोटकटवा पार्टी' की बन गई है। बिहार की चार विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भी जनसुराज ने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
तिरहुत स्नातक क्षेत्र पर हुए विधान परिषद उपचुनाव में भी जनसुराज का प्रदर्शन खराब रहा, जहां एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत हासिल की।