ब्रज में हुरंगा: हुरियारिनों ने बरसाए प्रेम के कोड़े, बलदेव में खेली गई कोड़ा मार होली
मथुरा के दाऊजी मंदिर में 'कोड़ा मार होली' का आयोजन धूमधाम से हुआ। होली के बाद बलदेव में हुरंगा मनाया गया, जिसमें हुरियारिनों ने हुरियारों पर प्रेम से भीगे कोड़े बरसाए। ब्रज की होली भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मशहूर है। बलदेव में, भगवान कृष्ण के भाई बलदाऊ जी की नगरी में, हुरंगा का आयोजन बड़े उत्साह से हुआ। हुरियारिनों ने हुरियारों के कपड़े फाड़े और उनसे कोड़े बनाकर, टेसू के रंग में डुबोकर हुरियारों को मारा। दोपहर करीब 1 बजे, हुरंगा शुरू होता है। हुरियारिनें हुरियारों के कपड़े फाड़ती हैं और उन्हीं कपड़ों से कोड़ा बनाकर उन्हें मारती हैं। बलदेव का हुरंगा एक धार्मिक परंपरा है और ब्रज की संस्कृति को जीवित रखने का एक हिस्सा है.

ब्रज की होली भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में मशहूर है। मथुरा में होली के बाद हुरंगा की धूम है। बलदेव में, भगवान कृष्ण के भाई बलदाऊ जी की नगरी में, हुरंगा का आयोजन बड़े उत्साह से हुआ। यहां दाऊजी मंदिर में 'कोड़ा मार होली' खेली गई। हुरियारिनों ने हुरियारों के कपड़े फाड़े और उनसे कोड़े बनाकर, टेसू के रंग में डुबोकर हुरियारों को मारा।
होली के अगले दिन, दाऊजी मंदिर में हुरंगा का आयोजन हुआ। मंदिर का आंगन टेसू के रंगों से भर गया। हुरियारे और हुरियारिन एकत्रित हुए, और होली के रसिया गीत की धुन शुरू होते ही नाच-गाना शुरू हो गया। हुरियारिनों ने पहले हुरियारों के कपड़े फाड़े, उन्हें पानी में भिगोकर कोड़ा बनाया, और फिर टेसू के रंग में रंगकर हुरियारों पर मारा।
यह हुरंगा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस परंपरा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग बलदेव आते हैं। पांडेय समाज के लोग, जो मंदिर के पुजारी भी हैं, इस आयोजन में शामिल होते हैं। हुरंगा के लिए गुलाल और टेसू के फूल मंगवाए जाते हैं। इसकी तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है, और हुरंगा के दिन मंदिर सुबह 5 बजे खुल जाता है।
दोपहर करीब 1 बजे, हुरंगा शुरू होता है। हुरियारिनें हुरियारों के कपड़े फाड़ती हैं और उन्हीं कपड़ों से कोड़ा बनाकर उन्हें मारती हैं। हुरियारे इस मार को सहने के लिए भांग पीते हैं और ब्रज की वेशभूषा में आते हैं। ब्रज की होली कृष्ण के चारों ओर घूमती है, जबकि हुरंगा बलदाऊ जी पर आधारित है।
कवि ने भी लिखा है, "देख देख या ब्रज की होरी ब्रह्मा मन ललचाए," जो इस परंपरा की खासियत बताता है। बलदेव का हुरंगा एक धार्मिक परंपरा है और ब्रज की संस्कृति को जीवित रखने का एक हिस्सा है।